AGOSH 1
- 31 Posts
- 485 Comments
‘जिन्दगी की राहे,
फिसलन भरी रही।
कदम डगमगाये,
अब मंजिल दूर नहीं।
ढूँढते-ढूँढते दूर,
चले आये राही ।
जिनकी तलाश थी,
वह स्वंयम आ मिली ।
अधर मौन थे,
आंखो से आंख मिली
बेबसी के द्वार पर
खिल गयी एक कली ।
महक उठी जिन्दगी,
उड़कर हवा चली
कैसे कहूं बात उस रात की ,
खिड़की खुली रही।
जिन्दगी जीने को थी,
पर सांस निकल गयी
कारवा संजाये थे
बहुत पर अपनी एक ना चली ।
तुझे देखते रहे,
चलते -चलते लीक पर ।
जहां – जहां तु चली
हाथ मलते रहे खुवाव
जब रूठ कर हमसे तु चली’ ।
हिंदी लेखक डॉo .हिमांशु शर्मा(आगोश )
Read Comments