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छोड़ भगो दिल्ली से गरीबों, नहीं तो भगाये जाओगे ।
अभी तो महंगाई की मार पड़ी है, आगे डंडे भी खाओगे ।
केवल आरक्षित है अमीरों को, मानो नहीं तो पछताओगे।
तुम्हारी गंध नहीं भाती है, कहाँ तक सैन्ट लगाओगे ।
(1)
मजदूरों की जरुरत है दिल्ली को, तब तक ही रहपाओगे।
दाम बढ़ रहे हैं सब चीज के, कैसे तुम सह पाओगे।
आग लगेगी भूख प्यास की, फिर तुम शोर मचाओगे।
नहीं मिलेगा कहीं सहारा, फिर पीछे तुम पछताओगे ।
(2)
विदेशी आ रही हैं कम्पनियाँ, डर्टी इंडियन तुम कहलाओगे ।
विरोध के स्वर जो उठे तुम्हारे, जेल भेज दिये जाओगे ।
सिर तुम्हारा जूता भी तुम्हारा, चुप सहकर रह जाओगे ।
आरक्षण की भयंकर लपटों में, तुम सब भस्म हो जाओगे ।
(3)
विकास तरक्की देख रहे हो, टैक्स लगेगा सब तुम्ही चुकाओगे।
अपनों के आगे हाथ फैला मजबूरन, भीख मांगते पाओगे।
डूबा देश अपनी भरें तिजोरी, ऐसे नेता देश के पाओगे ।
जहाँ उन्नत उन्नति की परख ना हो, स्वम भी ना रह पाओगे ।
(4)
लेखक डॉo हिमांशु शर्मा(आगोश )
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