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‘भोर की बेला धीरे-धीरे चढते सूरज ने जेठ मास की दोपहरी में तब्दील कर दिया । रामों को घर की कलह ख़त्म होने का कोई रास्ता नहीं सुझ रहा था । मन ही मन आज की मनहुस सुबह को बडबडाते कोस रही थी । खेती के काम तो बिन खाये-पिये दिन निकलते से ही शुरु हो जाते हैं । कौन करे कुडाकरकट, दूध-बूंद और जाने क्या-क्या यही वजह थी कलह की कोई काम को सुनता ही नहीं ।
रामों को सबसे ज्यादा चिंता थी, मूंग के खेत की जो फलियों से पका खड़ा था । मूंग की फलियों को तोड़ने का खेत पर सबका सहयोग जरूरी था, बच्चों की छुट्टियाँ थी, खेल कूद से ही फुर्सत नहीं थी ।
रामों का गुस्सा भी सातवें आसमान पर चढा था, अकेली ही घर से खेतों की तरफ चल दी । बमई ( सापों के रहने का स्थान ) वाले खेत पर पहुँचकर मूंग की फली तोड़ने लगी, विचारों की तन्द्रा कितनी देर बाद टूटी रामों को पता ही नहीं चला। आसपास के खेत वाले अपना काम कर दोपहरी से बचने के लिये खेतों से घर लौट गये थे । अकेली जंगल में रामों काम करते-करते थक गई थी और प्यास के मारे गला सूख रहा था । घर मैं कलह होने के कारण घर भी नहीं गई, ना ही घर से रामों की सुधबुघ लेने कोई आया ।
मूंग के खेत के साथ ही एक आम के पेड़ों का झुरमुट था कई आम के पेड़ होने के कारण गहरी छाया थी वहीँ साँपों ने बमई बनाई हुई थी, इसीलिये खेत को बमई वाला खेत कहते थे । गहरी छायं भूख और प्यास से बेहाल रामों आम के पेड़ों की छायं में सुस्ताने बैठ गई, शीतल ब्यार के झोकों नें रामों को आलस्य नींद की खुमारी में बदल गया, गाँव की बहू होने के कारण रामों ने साड़ी के पल्लू से मुहँ ढक लिया और गहरी नींद के अगोश में पहुँच गई ।
ना जाने कब दो काले नाग वहां बमई से निकले । शीतल छायं में पुरवाई हवा के खुमार में आपस में लिपट गये । जैसी रस्सी की बनावट बनातें हैं । जोर से फुंकार मारते उन्हें रामों का भी तनिक ध्यान ना रहा । कभी वे रामों के पेट पर कभी छाती पर आपस में अठखेलियाँ करने लगे । इस आभास से रामों की नींद तन्द्रा भंग हुई और सापों के लड़ने का मन मे आभास हुआ । तब मन में इतनी दहशत सवार हुई कि मल-मूत्र कपड़ो में ही निकल गया । परन्तु लाश की तरह यह सब कभी खुली आखों से कभी बंद आखों से आभास करती रही । ना जाने कितनी देर यह सर्पलीला का सिलसिला चलता रहा ।
धीरे-धीरे सूरज ढलता गया लोग खेतों की तरफ लौटने लगे। घरवालों ने रामों के बारे में किसी अनहोनी की शंका से घर व पास-पड़ोस में ढूंडना शुरू किया । गाँव में अगल-बगल में पूछना शुरु किया पर रामों का कहीं कोई अता -पता नहीं चला । गावं की गलियों में रामों का यूँ अचानक गुम हो जाना कौतुहल का विषय बन चुका था । जो भी सुनता वही स्तब्ध रह जाता, रामों का धीरज धीरे-धीरे टूटता जा रहा था, कुछ बूढे घर वालों को सान्तवना भी बंधा रहे थे ।
परन्तु गाँव का नलुबा हाँफते- हाँफते कुछ संबोधन कर रहा था । परन्तु कुछ खौफ के कारण व हाँफने के कारण स्पष्ट नहीं कह पा रहा था। हांफना कम हुआ तो उसने बताना शुरु किया “रामों ताई बमई वाले आम के झुरमुट में बेहोश पड़ी है ।” तथा दो साये चड़े सांप उनके ऊपर कूद-फांद मचा रहे हें । मैं भी दूर से देखकर डर गया । वैसे भी गाँव वाले साये चड़े सांप को देखना भी अशुभ मानते है । कुछ साहसी लोग गाँव से बमई वाले खेत की तरफ दौड़ पड़े ।
बमई वाले खेत की तरफ़ दौड़ पड़े । सूरज छिपने के पहले की लालिमा बिखेर रहा था ।परिजन शाम का अन्धेरा होने से पहले ही रामो को देखना चाहते थे । रामो बेहाल लाश की तरह दोनों हाथ फैलाये मुहं ढके सांस रोके जीवित रहने की आस लिए पड़ी थी । जैसे ही गाँव वालो का शोर कानों में पड़ा रामो की स्म्रति लौटी परन्तु दोनों सांपों का क्रुन्दन अब भी रामो की छाती पर जारी थी ।
जैसे ही गाँव वाले घटना स्थल पर पहुंचे और साहस कर आग जलायी तब कहीं कुछ देर बाद सांपो ने अपना आलिंगन तोड़ा और पास ही बमई में अंतर ध्यान हो गए ।
रामो को घर वालो ने झनझोडा व् गाँव वालों ने साहस बंधाया, परन्तु रामो तो बेहोश थी जहाँ- तहाँ बदन पर वस्त्र नही थे वही पर सांप के फैन (झाग) पड़े थे । वहीं – वहीं मोटे फैन नीले रंग के पड़े थे ।
तभी गाँव से टैक्टर ट्राली मंगबायी गयी । रामो को कुछ लोगो ने टैक्टर ट्राली मे लिटाया और सरकारी अस्पताल पहुंचाया वहां डाक्टरों ने रामो को खतरे से बहार बताया, तीन दिन के इलाज के बाद रामो घर वापिस आ गई, परन्तु साये चड़े सांपो का आखों देखा हाल आज भी रामो को डरा देता है । तथा सुनने वालो के मन में सनसनी पैदा करता है । प्राय: एक किम्बंद्ती है कि साये चड़े सांप को देखना एक अपशगुन है । वहीं मारना महापाप है ।
हिंदी लेखक डॉo .हिमांशु शर्मा ‘(आगोश )
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