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‘ मौत के बाद ‘

AGOSH 1
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कहावत है “अपने मरे बगैर स्वर्ग किसने देखा है”

‘ पुजारिन के कलुवा ने – बड़ा ह्ष्ट पुष्ट तथा स्वाभाव से हँसमुख गाँव से लेकर शहर तक कलुवा के कद्रदान बहुत हैं । कोई ना कोई रोज सुबह द्वार पर सूरज निकलने से पहले आवाज लगाता, जो पहले आ जाता बिना बहाने अलसाया सा आंख मलता उसके साथ चल देता वह मन लगाके काम करता इस ऐवज मे सुबह से लेकर शाम तक का खाना, चाय, पानी, और कुछ पैसे, ले जाने वाले का जिम्मा होता ।

एक दिन काम से लौटते समय रास्ते मे कलुवा चक्कर खाकर गिर पड़ा, लोग उठाकर उसके घर ले गये वह खाट पर लेटा एकटक आकाश को देखे जा रहा था । घरवाली ने टोका क्या देख रहे हो तब उसने आंखे बंद कर ली थोड़ी देर बाद कलुवा ने पानी मांगा और चारपाई पर बैठ गया गुमसुम सा, जो पूंछता उससे वह हाँ, ना मे जबाब देता और कहता अधिक बोलना अच्छा नहीं लगता ।

कई दिनों तक ऐसी हालत रहने के कारण कलुवा बहुत कमजोरी महसूस करने लगा था। एक दिन पुजारिन उसे वैद्य के पास ले गयी, वैद्य ने आंखे देखी, फिर जीभ देखी और बताया ‘पीलिया’ हो गया है, कुछ दिन दवा चलेगी आराम हो जायेगा । अब कलुवा श्रम के काम से घबराने लगा और बहुत कमजोरी महसूस करने लगा, पुजारिन का बेटा होने के कारण कलुवा शिव मंदिर पर बैठने लगा । भक्तगण आते कलुवा की कुशलता पूछते कुछ दयावान कलुवा को दवा के पैसे दे जाते ।

कलुवा अब चलने फिरने लगा था, तब उसने एक युक्ति निकाली, वह गाँव-गाँव शिव मंदिर के नाम की फेरी लगाने लगा, फेरी मे लोगों से केवल चून (आटा ) ही लेता फेरी लगाते घर के द्वारे पर आवाज लगाता

‘बाल बच्चों की खैर, माई पंजा भर चून,
बाखल बेडे की खैर, माई पंजा भर चून’।

कलुवा की आवाज सुनकर बच्चे एकत्र हो जाते जिस गली मे जाता लोग खाने को पूछते जहां भूख लगती वहीं खाना खा लेता । जब झोली भर आटा हो जाता तब अपनी झोली को सोटा (डंडा ) के सहारे कन्धा देता और वापस चल देता । यही रोज का क्रम था । इस तरह फेरी से घर गृहस्ती लायक खूब आटा ईश्वर हो जाता यूँ ही ईश्वर के नाम पर कलुवा का रोजगार था।

कुछ दिन बाद कलुवा को बीमारी ने ऐसा घेरा कि घर के बहार निकलना मुश्किल हो गया, कलुवा ने चारपाई पकड़ ली मन ही मन राम भजन मे लीन रहता कलुवा के हमदर्द बहुत थे । दवा से लेकर जरुरत का समान लोग घर पे ही दे जाते, केवल दया, दुआ मे कलुवा के होट हिलते,

“तेरे बाल बच्चों की खैर ”

यही क्रम वर्षो चलता रहा आखिर ईश्वर को कलुवा की याद आई, कलुवा की सांसे बंद हो गयी । ईश्वर की ऐसी ही मर्जी संतोष कर घर वाले कफन काठी का इंतजाम करने लगे । काठी बनायीं गयी और कलुवा के शरीर को कफ़न से ढक दिया गया अर्थी को लेकर चार आदमी चल दिये । प्रियजन का बिछुड़ने का दु:ख व बच्चों का करुण रुदन सुन प्रत्येक प्राणी ग़मगीन तथा बहुतों की अश्रुधारा बह रही थी । अर्थी के पीछे-पीछे जन समुदाय चल रहा था। शंखनाद हो रहा था जिससे स्वर्ग के दरवाजे खुल जाये ।

पीछे-पीछे चल रहे लोग राम नाम सत्य है सत्य बोलो गत्य है । उच्चारण कर रहे थे जिससे कलुवा की आत्मा को शांति मिले इस प्रकार शव यात्रा शमशान पहुंची । लकड़ी से चिता लगाई गयी अंतिम पिण्ड दान के लिए अर्थी से कफ़न अलग करने लगे तो देखा कि अर्थी हिल रही है लोगों ने भूत समझ अर्थी को छोड़ दूर भागने लगे तब कलुवा ने आवाज लगाई, अरे रुको मुझे यहाँ छोडकर कहाँ जा रहे हो । साहस कर लोग पलटे, तो कलुवा नंगा खड़ा था। एक आदमी ने अपनी चादर से कलुवा का बदन ढका, लोग सहारा देकर वापस घर लाये।

कलुवा अचंभित सा लोगों को देख रहा था और लोग कलुवा को । लोग कलुवा से शास्त्रार्थ करने लगे। परन्तु कलुवा स्तम्ब मौन सब लोगों को निहार रहा था । तब कलुवा ने अहिस्ता से पूछा यह सब क्या हुआ उपस्थित समूह ने जोर स्वर मे कहा-
‘”तू मर गया था ”

तू इतने समय कहां रहा – जो रहस्य धर्मराज के लिए भी दुर्लभ है, वह रहस्य कलुवा सुना रहा था। स्वर्ग दर्शन का अदभूत आँखों देखा सच्चा वृतांत कलुवा ने यूं सुनाया। लोग बडे विस्मय और कौतुहल से एकटक कलुवा को देख रहे थे। कलुवा ने बताया ‘मुझे दो मौत के फरिश्ते सफेद कपडे पहने एक मेरे आगे दूसरा मेरे पीछे मुझे बीच मे लिए एक बहुत बड़ी सीढ़ी जैसे जीने से ऊपर की तरफ ले गये जिसका आकार जमीन से लेकर स्वर्ग से जुड़ा था। सीढ़ी का ऊपर का छोर स्वर्ग के दरवाजे से लगा था। दरवाजे पर पहुंच कर देखा एक तख्त पर गेरुवा कपडा पहने लम्बी सफेद दाढ़ी वाला साधू रूप बैठा था उसके सामने एक बहुत मोटी पोथी रखी थी, मेरे पहुंचते ही उस साधू रूप ने जल्दी -जल्दी पोथी पलटी, तब मे स्वर्ग के दरवाजे पर खड़ा अन्दर का माहौल देख रहा था । दूर तक बहुत बड़ा मैदान जो कोहरे की हल्की धुंध से हल्का -हल्का ढका था। बहुत प्यारी सुगंध आ रही थी वहीं लाइन बार बच्चे, बूढे, नर नारी, सभी नग्न अवस्था मे चुपचाप नीचे बैठे थे सब अपना सिर नीचे झुकाये थे।

बिल्कुल सन्नाटा छाया था, इतना सब कुछ क्षणभर मे देख पाया तब लम्बी दाढ़ी वाले साधू ने मेरे साथ आये दोनों फरिश्तों से कहा, तुम इसे गलत ले आये इसे नहीं उस प्राणी को लाओ और मुझे नीचे धकेल दिया। जब मेरी चेतना लौटी, तब मैं श्मशान मे अर्थी पर था। लोग कलुवा की बताई बातें बडे एकाग्र ध्यान से सुन रहे थे। तथा स्वर्ग की कल्पना मन ही मन कर रहे थे। तथा स्वर्ग की कल्पना मन ही मन कर रहे थे।तब ही किसी ने आकर बताया कि गाँव के दूसरी छोर पर पंजेरु (सब्जी फल) वाले कलुवा का देहांत हो गया है। पुजारिन के कलुवा की वापसी और पंजेरु के कलुवा की मौत को गाँव वाले बडे विस्मय से देख रहे थे, इस सच्ची ह्रदय विदारक घटना ने लोगों को मौत के बाद के रहस्य से हल्का सा परदा जरुर हटा दिया ।

लेखक डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश)

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