‘छीना गया हक़’
‘छीना गया हक़’
जूती गाँठ रहा पंडित उससे क्या खता हुई ।
डिग्री लिये फिरता है हाथ में सुनवाई ना कहीं हुई।
केवल आरक्षित का बोर्ड लगा है सरकार वेवफ़ा हुई ।
नौकरी कहीं लगी नहीं शादी भी है रुकी हुई ।
(1)
लोग पूछते तिलक लगा है जनेऊ माला सजी हुई।
ऐसी करनी कैसे हो गई उलटी गंगा बही हुई।
चमडा लिये बैठे हो पोथी साथ मे धरी हुई ।
गिरते पड़ते यहाँ पहुंचे हो जगह खाली यहाँ हुई।
(2)
साठ साल की आजादी में पंडित की बुरी दशा हुई।
पढ़ लिखकर बेरोजगार बने ऐसी बात कही नहीं हुई।
खूब बनाया संगठन हमने भीड़ इकट्ठी नहीं हुई ।
अंधेरनगरी चौपट राजा बात हमारे साथ हुई।
(3)
श्राप दे रहा है पंडित आंखे क्रोध से लाल हुई।
पहला जमाना रहा नहीं तो आस बदलाव की लगी हुई ।
हे परशुराम धरा पर आओ दुर्गति अब बहुत हुई ।
ज्ञान ध्यान की कदर नहीं बहुरुपीयों की महफ़िल सजी हुई।
(4)
डॉo हिमांशु शर्मा(आगोश)
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