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‘प्यारी दुल्हनिया’

AGOSH 1
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भरी ना माँग सिंदूर सुहागन बन गई कैसे ।
बिछुबा दवै ना पाँय भाँवर पड़ गई कैसे।
पिया संग खेले ना कंगना अंगूठी जीती कैसे।
सजी ना दुल्हन की सेज सुहाग रात हो गई कैसे।

(1)

चुनरी संग गांठ लगी ना फेरे पड़ गये कैसे।
बाजा बजा न मण्डप सजा शहनाई बज गई कैसे।
ना बाराती ना घराती मिलाई हो गई कैसे।
धुँआ अग्नि से उठा नहीं मंत्र पढ़ गये कैसे।

(2)

लहँगा घाघरा चलन पुराना साड़ी बाँधू कैसे।
ओढ़ ओढ़नी और चुन्दरिया पिया रिझाऊ कैसे।
मिनी स्कर्ट और जिन्स पहनकर बैठूं नीचे कैसे।
हार हमेल झमेल पहनकर करू नौकरी कैसे।

(3)

दस्तूर पुराना छूट रहा रूढ़िवाद को गले लगाऊँ कैसे।
फुर्सत कहाँ इस माहौल में विवाह की वेदी सजाये कैसे।
संस्क्रति अब बिखर रही है इसे संजोकर रखें कैसे।
नर-नारी का भेद मिट गया प्यारी दुल्हनिया बन गई कैसे।

(4)

लेखक डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश )

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