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‘नेतृत्व’ का पतन’

AGOSH 1
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तिरंगा कह रहा है, शहीदों की चिताओं से


ये आजादी नहीं है लूट का एक बहाना है।
राष्ट से द्रोह है गरीबों को मिटाना है ।
नहीं है आँखों में पानी घडियाली आँसू बहाना है।
कितने मारे गये हैं लोग कफ़न बिन लाश ढोना है।
सजाकर अपनी कुर्सी को ये नेता बैठे हैं मकानों में।
आगे चल सकेगा ना देश इनके बताने में।

तिरंगा कह रहा है, शहीदों की चिताओं से— (1)

नहीं अब लाज है इनको नाही कोई काम करना है।
लूट कर इस देश को विदेशी बैंक भरना है ।
योजनाओं के बहाने धोखा दे देश को खाये जाते हैं।
नेताओं की लूट की गिनती शुरू होती करोड़ों में।
नहीं जाकर खत्म होगी, ये राष्ट के मिट जाने में।
धुँआ सा उठ रहा है, आजादी की मीनारों में।

तिरंगा कह रहा है, शहीदों की चिताओं से— (2)

रोजगारों की कमी करके, बेरोजगारी बढ़ाते हैं।
आरक्षण का हौआ हर जगह, उच्च शिक्षा को नीचे गिराते हैं।
ना उम्मीद है बाकी हर जगह,योग्य पर अयोग्य को हावी बनाते हैं।
करते फिरते हैं रोज वायदे,सिर्फ जनता को उल्लू बनाते हैं।
नेता कर सकेंगे कहाँ तक बेवफाई जमाने में।
नहीं अब चल सकेगी ये संसद संविधान के बताने में।

तिरंगा कह रहा है, शहीदों की चिताओं से—- (3)

उठो तुम नौजवानों और बता दो झूठ कैसे रोती है।
मांग कर भीख वोटों की,फिर पांच साल मौज करते हैं।
खादी व खाकी वर्दी मिलकर जनता को रुलाते हैं।
घोटाले व भ्रष्टाचार अन्याय के रोज मैडल सजाते हैं।
पकड़ लो मजबूत तुम झंड़ा तिरंगा नहीं आना किसी के बहाने में।
छीन लो अपनी आजादी नहीं जाना हमको गुलामी में।

तिरंगा कह रहा है, शहीदों की चिताओं से— (4)

लेखक डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश)

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