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‘एक गांव जिसमें एक कुरूप महिला दुलारी रहती थी। जिसके मुहं पर चेचक के दाग मोटी , कानी तथा बेडौल शरिर जिसको देख कर सब मुहं चुराते थे। समय बीतता गया और उस महिला के चार पुत्र हुए अच्छे पढे- लिखे, सब लोग उसके बच्चों की प्रशंसा करते। वह महिला सब की बात अनसुनी कर देती और किसी से कुछ नहीं कहती अगर कहती भी तो औरते उसको कानी चुप हो जा कहती इसी डर से वह चुप रहना पसंद करती और अपने रूप के बारे मे किसी को ना कोसती और प्रभु का भी शुक्रिया अदा करती । हे प्रभु तुने मुझे ऐसे आज्ञाकारी पुत्र दिये। कुछ दिन बाद दुलारी का एक पुत्र न्यायाधीश बना , दूसरा पुत्र डाक्टर बना ,तीसरा पुत्र पुलिस अधिकारी बना और चौथा पुत्र डी0एम बना। अब तो गांव में उसके पुत्रों की ही चर्चा होती सब लोग चुप-चाप रहते। अब तो औरतें आती और कहती दुलारी है, दुलारी कैसी हो मगर दुलारी पुरानी बातों को नहीं भूली। उसने औरतों से कहा क्यों ,क्या हुआ जो आज तुम मुझे दुलारी कह रही हो , अरे मेरे कुरूप पर थूको , कानी कहो मै बुरा नहीं मानूँगी क्योकिं प्रभु ने जो रूप दिया है मैने उस के लिये प्रभु को कभी नहीं कोसा तो तुम लोगों को क्या कोसती, क्या हुआ प्रभु ने मुझे रूप ना दिया तो क्या कोख तो दी है । सब लोग उसकी महानता भरी बातों को सुनकर बडे शर्मिंदा हए ,,,,,,,
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