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विषय वस्तु “कृषि सम्बन्ध और ग्रामीण मजदूर ” सोचनीय विषय –

AGOSH 1
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परिचय:-लेखक डॉo हिमांशु शर्मा पुत्र श्री गोपी चंद शर्मा ग्राम निखोब डाक खाना -केशोपुर सठला जिला-बुलंदशहर के दोआब क्षेत्र (गंगा जमुना )का उपजाऊ क्षेत्र विशेष तौर पर जिला बुलन्दशहर के
चार ब्लाक (1)लखावटी (2)स्याना (3)ऊँचा गाँव (4)बीवी नगर , क्षेत्र को अपने शोध का केन्द्र बनाया,क्योकि लेखक स्वम ब्लाक बीवी नगर से सम्बंधित है ।स्वम एक किसान परिवार से होने के कारण कृषि क्षेत्र से सम्बंधित है ।स्वम एक किसान परिवार से होने के कारण कृषि क्षेत्र से जुड़ा रहा है ।किसान व मजदूर का चोली-दामन का सम्बन्ध जन्म जन्मांतर से रहा है ।

भूमिका :-कृषि का भारतीय संस्क्रति से गहरा जुडाव रहा है ।इसलिए इसको धरती माँ का दर्जा प्राप्त है, प्रत्येक वर्ष एक मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है ,परन्तु ग्रामीण मजदूर के बारे मे शायद ही किसी सरकार के द्वारा कोई कारगर कदम या हितकर योजनाऐ बनायीं जाती हों ।अगर योजना बनाई गई तो उसका क्रियावन ठीक प्रकार से नहीं हो पाता -ग्रामीण मजदूर को समाज मे सम्मानित दर्जा मिले इसके लिए ठोस कदम उठाने की जरुरत है ,जिससे उसको मिल रही सुबिधाओ की लूट खसोटना हो सके ।कैसे रुकेगी? कौन रोकेगा ?इस देश मे हालात ऐसे है कि कहाबत है “जब खेत ही बाड़ को खायेगी “तो कैसे होगा ग्रामीण मजदूरों की कल्याण -योजना मजदूरों को बनी है जैसे ‘नरेगा’,”मनरेगा” परन्तु सही संचालन व ठीक देखरेख न होने के कारण ग्रामीण मजदूर अपने को ठगा महसूस करता है वजह स्पष्ट है ।

“काजू भूने प्लेट मे विहस्की ग्लास मे
उतरा है रामराज विधायक निवास मे ”

ग्रामीण मजदूरों के कार्यक्षेत्र :-

1- बागबानी
2-पशुपालन
3-खेत खलियान

1. बागबानी :- गाँव मे निवास करने के कारण अधिकतर मजदूर क्षेत्र से जुडे हुए है। कृषि अलग -अलग कृषि आधारित काम व फसले है ।उदहारणत: ऊँचा गाँव ब्लाक व स्याना ब्लाक फल पट्टी घोषित है ।यहाँ बागबानी बहुतायत मे होती है,मुख्यतः आम के बाग है मजदूर रखवाली से लेकर फल तोड़ व लधान तक रहता है परन्तु ‘नरेगा’,”मनरेगा” से प्राप्त धन के बराबर बाग की फसल मे मजदूरी नहीं मिलती ।सरकार को इन योजनाओ को 100 दिन के बजाय पूरे साल कर देना चाहिए ।तब मजदूर इसी योजना के अंतर्गत किसान के खेत व खलियानों मे भी काम कर सकेगा।
2. पशुपालन :-जिला बुलंदशहर मुख्यत:दूध व्यवसाय से जुड़ा है ।दिल्ली को दूध आपूर्ति मे सबसे अग्रणी भूमिका है ,परन्तु विचोलियो के कारण दूध का उचित मूल्य नहीं मिल पाता सबसे अधिक ग्रामीण मजदूर का सहायक व्यवसाय दूग्ध, पशुपालन है ।इस ओर सरकार का रव्बैया अबहेलनात्मक है -कारण दूग्ध प्लांट अधिकतर नेताओ व दबंग व्यक्तियों के है ,इसलिए सरकार बिचोलियों को प्रखर आन्दोलनों के बाद भी नहीं हटा सकी ।ना ही दूध की मंडियों को बनाने का कार्य कर सकी।अगर ग्रामीण मजदूरों को दूध का सही मूल्य प्राप्त हो जाय तो उसकी स्थति मे उचित सुधार हो जायेगा ।एक सुखद पहलू है महिलाओ का ग्रामीण मजदूर भागीदारी मे 48% है ।जो पहले केबल 41% था ।अब पुरुषो से भी अधिक है ।
3.खेत -खलियान हू :-गन्ना व गेहू क्षेत्र-बीवी नगर व लखावटी ब्लाक क्षेत्र गन्ना और की उपज मे अग्रिणी है ।ग्रामीण मजदूर अधिकतर इस क्षेत्र मे किसान से यहाँ हिस्सेदारी व मजदूरी करके पशु चारा व खाने के लिए अन्न व गुड़ अदि का जुगाड़ करता है ।ग्रामीण किसान व ग्रामीण मजदूर का यह गठजोड़ देश को अन्न का विपुल भंडार देता है ।जिसको सरकार सहेज नहीं पाती ।

“भर देंगे भंडार अन्न के खाई कसम किसानो ने
जोश नहीं कम होने देंगे कहा श्रमिक दीवानो ने “।

परन्तु सरकार उपज का सही मूल्य किसानो को नहीं दे पाती कृषि लागत बढ़ रही है । ग्रामीण मजदूर की पर्याप्त मजदूरी से बंचित है ।सरकार की गलत नीतियों के कारण किसान आत्महत्या कर रहे है ग्रामीण
मजदूर खौफजदा है।

कारण :-

” मिटटी से सोना उपजाते धान के खेत लहलाते है ।
खुशबू कर खेत खलियानों बगिया और बागानों मे ।
ठगे से रह जाते है जब भाव खुले बाजारों के दलालों मे ”
(डॉo ब्रजेन्द्र अबस्थी )

सरकार की उपेक्षा का शिकार ग्रामीण मजदूर :-N.S.S.O (नेशनल स्टेटिकल सर्वे आर्गनाईजेशन )के ताज़ा आंकडे बताते है ,70 लाख लोग ग्रामीण किसान व ग्रामीण मजदूर प्रतिवर्ष कृषि छोड़कर ग्रामीण आंचल को छोड़ अन्य शहरी स्थानों ,महानगरो को पलायन करते है यानी 2000 लोग प्रतिदिन इस सर्वे से स्पष्ट हो जाता है कि परिस्थिति कितनी नाजुक एबम भयानक है क्या सरकार ने कोई ठीक पहल की बिल्कुल नहीं ;

“जब बर्तमान की हालत ऐसी है ।
तो भाबिष्य की हालत क्या होगी “(डॉ ब्रजेन्द्र अबस्थी )

कारण स्पष्ट है स्वम कृषि की दुर्दशा, हालत का व्यान करती है, उपाय खोजे जाने चाहिए मगर सरकार की हालत उपाय खोजने से अलग, उस हालत मे है ,एक दार्शिनिक के अनुसार ;

“सावन के महीने मे गधे को हरा ही हरा दिखाई देता है ”
परन्तु यह निर्बिवाद सत्य है -जब किसान -ग्रामीण मजदूर मरेगा या आत्महत्या कर मर रहा है -तो शायद वो भी नहीं बच पायंगे जो इस ब्यथा- कथा के ज़िम्मेदार है ।

कृषि बैज्ञानिक डॉ . स्वामीनाथन की रिपोर्ट व अन्य रिपोर्ट किसानो की दुर्दशा को व्यान करती है परन्तु ग्रामीण मजदूरों के बारे मे किसी ने आज तक सर्वे नहीं कराया , ना ही स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करायी गयी ।परन्तु इतना सार सुलभ है ,जहा किसान आत्महत्या कर रहे है ।वही मजदूर भी सुख -चैन का जीवन व्यतीत नहीं कर रहा है ।

प्रथम सर्वे 2008 मे मिनिस्ट्री ऑफ़ स्टेटिक्स एंड प्रोग्राम एक्सपेरिमेंटशन का हुआ मजदूरों को नहीं लिया गया ।

दूसरा सर्वे 2010 को हुआ जिसमे ग्रामीण मजदूरों को नहीं लिया गया ।इस कारण उनके उत्थान की योजना बनाने मे बहुत बिलम्भ व नाइंसाफी हुई ।

चौकाने वाला तथ्य :-नामी अमेरिकी सर्वे कंपनी ‘गैलपपोल ‘के एक इंटरनेशनल सर्वे के अनुसार अधिकतर व्यस्क युबा या तो देश से बहार या गाँवों से शहर व महानगर की तरफ पलायन कर रहे है ।40%किसानों व ग्रामीणों मजदूरों से सर्वे N.S.S.O ने किया कोई भी माँ बाप बच्चो से खेती व खेती कार्य नहीं करना चाहता अगर स्वं ये सर्वे बच्चों पर किया जाय तो 60%बच्चे खेती कार्य करने के पक्ष मे नहीं है ।स्थति स्पष्ट
एबम कष्टदायक है ।
“हर डाल पे उल्लू बैठा है ।
अंजामे गुलिस्ता क्या होगा “।।
एक शोध पत्र का गंभीर पहलू ;-(बुलंदशहर )अमरसिंह पी .जी . कॉलेज लखावटी बुलंदशहर( यू .पी )के कृषि
रसायन विभाग के प्रवक्ता डॉ0 अवधैश प्रताप सिंह के शोध से यह गंभीर पहलू उजागर हुआ कि 329 मिलियन हैकटेयर भूमि मे सिर्फ 43%भूमि की उर्वरा शक्ति मे गिराबट आ रही है।इस प्रकार खाद्यान संकट तो बढेगा ही इसका अधिक प्रभाव किसान व मजदूर पर पडेगा ।सरकार बेपरवाह है ।

ग्रामीण मजदूर की कृषि से अलग विकल्प की तलाश :–

“संत विनोवा कहे पुकार धन और धरती पर सब का अधिकार इस नारे की प्रसंगिता को साकार करने को संत विनोवा भावे ने भूदान यज्ञ आन्दोलन चलाया कुछ सफलता जरुर मिली ,परन्तु बहुत आंशिक ग्रामीण
मजदूर की आशाओ ने दम तोड़ दिया है और अन्तत: इन कारणों के कारण अन्य विकल्प तलाश किया |

1-

गाँवों मे दबंगई
2-
साहूकार का कर्ज
3-
समता व स्व:छंदता
4-
स्वास्थ एबम शिक्षा का अभाव

उपरोक्त अभिशाप आज भी सैकड़ो लोगों के पलायन के लिए विवश करते है ऐसा नहीं सरकार ने योजना नहीं बनाई परन्तु वो ग्रामीण मजदूर की ढाल नहीं बन सकी सरकार को उन योजनाओ पर पुनः निरिक्षण की आबश्यकता है ।

नावार्ड की रिपोर्ट :-नावार्ड की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र से किसानो और मजदूरों को 5लाख करोड़ का कर्ज अगले कुछ सालों मे चुकाना है ,कर्ज द्वारा लागत से खेती मे आधुनिक पद्धति से ग्रामीण मजदूरों को रोजगार की कमी हुई है क़र्ज़ ना चुकाने व मजदूरी न होने के कारण शहरो की तरफ पलायन कर रहे है ।सरकार की क़र्ज़ माफ़ी ना ही मजदूर के हित मे है ,ना ही किसान के इसके स्थान पर रोज़पूरक इमानदारी से रोजगार मोहया कराना एक विकल्प है ।

“क़र्ज़ की पीते थे मय ,गर समजते थे
फाकामस्ती रंग लायेगी एक “(गालिव )

उपसंहार :-चलचित्र ‘धरती कहे पुकार के ‘के गाने ‘धरती कहे पुकार के मुझको चाहने वाला बैठा हैं।
किसलिए घर के ,मेरा सब कुछ उसी का है जो छूले मुझको प्यार से ,के मेरा सब कुछ उसी का है जो छूले मुझको प्यार से ,के विपरित दृश्य दिखायी दे रहा है ।समाज मे नौकरी हां, कृषि ना ।इस अथक प्रयास मे विषय बस्तु को विस्तारित करना मात्र ‘गागर मे सागर भरने जैसा होगा’ ।

ग्रामीण मजदूर का आज भी कृषि से सम्बन्ध ऐसा है ।

“ना छुटाए छुटे ”

ग्रामीण मजदूरों के हित मे अगर सरकार को कुछ करना है तो एक कवि की पंक्तिया व्यान करती है ।
“आरक्षण की बाढ़ सौ है ठैव,ठैव मे ”

” शिक्षा मे ,नौकरी मे, पदों की उन्नति मे,चुनाव मे ”

तब कृषि मे क्यों नहीं ?

अंत मे शोध को विराम देते हुए –
कृषि ग्रामीण मजदूरों के उज्जवल भबिष्य की कामना के साथ ।
हिंदी लेखक डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश )

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